साइलेंट किलर है ये कैंसर, लक्षण दिखते ही जांच जरूर कराएं, वरना जा सकती हैं जान

हमारी बॉडी में दो तरह के कैंसर होते हैं. एक कैंसर और दूसरा नॉन कैंसर कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़कर एक ट्यूमर बना देती है. इसकी बायोप्सी कराने पर ही इसकी अच्छे से सही पहचान हो पाती है. कि यह कैंसर वाली गांठ है या नॉन कैंसर वाली यह बॉडी में कहीं भी हो सकती है.

 

Cancer Cells

कैंसर की विशेष बात यह है कि यह शुरुआत में इसकी पहचान बड़ी मुश्किल से हो पाती है. जब यह अन्य अंगों में पहुंच चुका होता है और कैंसर symptoms गंभीर हो जाते हैं. तब इसका पता चलता है. ऐसा ही एक और कैंसर है जिससे साइलेंट किलर के नाम से जाना जाता है. आइए जानते हैं इस कैंसर के बारे में.

फेफड़ों का कैंसर होता है साइलेंट किलर

डॉक्टरों के मुताबिक जब इसकी शुरुआत फेफड़ों की कोशिकाओं में होती है. तभी से उसे फेफड़ों का कैंसर या लंग कैंसर कहा जाता है. यह कैंसर धीरे-धीरे व्यक्ति की जान लेने लगता है इसलिए इसे साइलेंट किलर केंसर कहा जाता है. इसके होने का मुख्य कारण धूम्रपान है जल्दी जांच होने पर व्यक्ति लंबे समय तक जीवन यापन कर सकता है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक केवल 15% फेफड़े के कैंसर का शुरुआती स्तर पर इलाज किया जा सकता है. यहां भी 5 साल तक जिंदा रहने का रेट लगभग 54% है. फेफड़े के कैंसर के लगभग 70% रोगी शुरुआती चरण में ट्रीटमेंट के बाद थोड़ा अधिक जी लेते हैं. ट्यूमर के अन्य अंगों में फैल जाने पर यानी चौथी स्टेज में आने पर 5 साल तक जीवित रहने की दर घटकर केवल 4% रह जाती है.

जरूरी नहीं सिगरेट पीते हो

अधिकतर मामलों में फेफड़े के कैंसर का प्रमुख कारण सिगरेट पीना पाया जाता है या फिर बीड़ी में अन्य तरह की स्मोकिंग करना भी कैंसर होने का बड़ा कारण है. हालांकि आजकल लंग कैंसर उन लोगों में भी देखा जा रहा है जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया है फेफड़ों के कैंसर के कोई विशेष शुरुआती लक्षण नहीं होते हैं.

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